Thursday, September 1, 2011

तोतली प्रीति क्यों गँवाई...


तोतली प्रीति क्यों गँवाई...

सुधियों के  क्षितिज से, पुरवा   वह आई,     
जन्मों की सोई हुई , हर पीर उभर आई।
मौसम  का  दोष  नहीं,
सुधियाँ   वेहोश   नहीं।
योवन   मदहोश  हुआ,
अखियाँ   निर्दोष  नहीं।
सुधियों के  सागर में, लहराती  लहर आई,
जन्मों की  सोई हुई , हर  पीर उभर आई।
यादों  के   दीप   जले,
अँधियारा   दीप  तले।
रेतीले   मीत    मिले,
मेरा   विश्वास    गले।
आशा  की  मेंहदी  भी,   मातम   ले  आई,
जन्मों की  सोई हुई , हर  पीर उभर आई।
कैसा  ये  प्यार   किया,
हर  पल  बेकार जिया।
उनको   एहसास  नहीं,
जीवन क्यों वार दिया।
सांसों के पनघट पर, क्यों गगरी रितवाई,
जन्मों की सोई हुई , हर  पीर उभर आई।
बचपन  का साथ छुटा,
भोला सा प्यार  लुटा।
यौवन    दीवार   बना,
आँखों  में  प्यार  घुटा।
यौवन में आग  लगे, तोतली प्रीति क्यों गंवाई,
जन्मों  की   सोई  हुई , हर  पीर  उभर  आई।
...
आनन्द विश्वास .


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