अश्रु गगन झखझोर दिया, क्यों.
मेरा सीमित वातायन था,
अपने से बस अपनापन था.
मेरा अपनापन सब हर कर,
अपनापन सब गेर दिया क्यों,
अश्रु गगन झखझोर.....
अनव्याहे सपनों को तुमने,
अनचाहे अपनों को तुमने.
वन -वन का वासी था मैं तो,
स्वर्णिम आँचल छोर दिया क्यों.
अश्रु गगन झखझोर...............
नयनों के नीले आँगन से,
नीलम के गीले आँचल से.
सपनों का घर वार लूट कर,
वर वश रथ पथ मोड़ दिया क्यों.
अश्रु गगन झखझोर..............
किया समर्पण मैंने किसको ,
अनजाने अपनाया किसको .
ठगनी माया आनी जानी,
राम भजन सब छोड़ दिया, क्यों.
अश्रु गगन झखझोर...............
मेरा सीमित वातायन था,
अपने से बस अपनापन था.
मेरा अपनापन सब हर कर,
अपनापन सब गेर दिया क्यों,
अश्रु गगन झखझोर.....
अनव्याहे सपनों को तुमने,
अनचाहे अपनों को तुमने.
वन -वन का वासी था मैं तो,
स्वर्णिम आँचल छोर दिया क्यों.
अश्रु गगन झखझोर...............
नयनों के नीले आँगन से,
नीलम के गीले आँचल से.
सपनों का घर वार लूट कर,
वर वश रथ पथ मोड़ दिया क्यों.
अश्रु गगन झखझोर..............
किया समर्पण मैंने किसको ,
अनजाने अपनाया किसको .
ठगनी माया आनी जानी,
राम भजन सब छोड़ दिया, क्यों.
अश्रु गगन झखझोर...............
....आनन्द विश्वास
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