Wednesday, August 10, 2011

नयन नीले .......

नयन नीले

नयन   नीले,  वसन  पीले,
चाहता  मन और  जी  ले।
छू  हृदय  का  तार  तुमने,
प्राण  में  भर प्यार तुमने।
और  अंतस्  में  समा  कर,
मन किया उजियार तुमने।
चाह   होती   नेह   भीगी,
पावसी   जलधार  पी  ले।
चंद्र  मुख  औ  चाँदनी तन,
और  निर्मल  दूध  सा मन।
गंध   चम्पई    घोलते    हैं,
झील  जैसे  कमल  लोचन।
रूप  अँटता  कब  नयन  में,
हारते     लोचन    लजीले।
पी  नयन  का  मेह   खारा,
और   फिर  भर  नेह सारा।
एक   उजड़े  से  चमन   को,
नेह    से    तुमने    सँवारा।
हो   गया   मन  क्यूँ  हरा है,
देख   कर   ये  नयन   नीले।
और   झीनी   गंध   दे   कर,
प्यार   की   सौगन्ध  दे  कर,
स्नेह  लिप्ता   उर  कमल  का,
पावसी    मकरंद    दे   कर।
कौन   सा   यह  मंत्र   फूँका,
हो   गये     नयना    हठीले।
नयन   नीले,   वसन    पीले,
चाहता   मन   और  जी  ले।

....आनन्द विश्वास   

Monday, August 8, 2011

सिर्फ मुझको वरो

              
सिर्फ मुझको वरो.

मेरे  दर्द   मेरेसिर्फ    मुझको  वरो,
क्वारी   ये  लगन  है,   सुहागन  करो।
मेरा   मन  है  कहीं, 
और  तन   है  कहीं,
नाम   तेरा    लिया,
जाम   लेना    नहीं.
रात  जाती  रही, अब  तो धीरज धरो,
मेरे  दर्द    मेरे सिर्फ   मुझको  वरो।
प्यार  उर  से  किया,
सिर्फ   उर   में   रहे।
दर्द     सहता    रहे,
ना कि  लब  से कहे।
दर्द   घुलता  रहेमुझसे   वादा  करो,
मेरे  दर्द    मेरे सिर्फ    मुझको  वरो।
प्यार   होता   अमर, 
किसके   रोके  रुका। 
तन  से  रिश्ता  नहीं, 
मन से जग भी झुका।
तन से  ना ही सही, मन  से बातें  करो,
मेरे  दर्द    मेरे सिर्फ    मुझको  वरो।
...आनन्द विश्वास.