कुछ मुक्तक और .......
ये वसंती पर्व सूना हो रहा है,
दर्द दिल का और दूना हो रहा है.
मंहगाई ने तोडी कमर है आज ऐसी,
गाँव मुम्बई और पूना हो रहा है.
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प्रीति की परछाइयों को छोड़ पाओगे नहीं,
बन्धनों में बांध गये अब तोड़ पाओगे नहीं.
दूर कितने भी चले जाना नयन से तुम,
बिम्ब उर में बन गया, मुहु मोड़ पाओगे नहीं.
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दर्दीले गीत, तुम्हारे लिए हिया रोता है,
रूंठे संगीत, तुम्हारे लिए हिया रोता है.
बचपन में खेले साथ, अब रहते हर पल दूर,
रेतीले मीत, तुम्हारे लिए हिया रोता है.
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ह्रदय की हर कली सूखी, कि पांखों में नही मकरंद बाकी है,
ह्रदय की लाश बाकी है, कि सांसों में नहीं अब गंध बाकी है.
ह्रदय तो था तुम्हारा ही, ये सांसें भी तुम्हारे नाम कर दीं थी,
तुम्हारे प्यार की सौगंध, कि प्राणों में नहीं सौगंध बाकी है.
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....... आनन्द विश्वास
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