दखलंदाजी सही नहीं.
मैं अपना
काम करूँ, और तुम अपना काम करो,
एक दूसरे के कामों में, दखलंदाजी सही नहीं।
सूरज रोज़
सुबह उगता है,
और शाम को
ढल जाता है।
और चंद्रमा
रोज़ शाम को,
आ कर सुबह चला
जाता है।
एक प्रकाशित
करता जग को, दूजा देता शीतलता,
दौनों
कामों में निष्ठा है, क्या ऐसा करना सही नहीं।
नदियाँ सिंचित करतीं
धरती,
धरती
देती है हरियाली।
वादल ले
पानी सागर से,
हम सबको
देते खुशहाली।
जल का चक्र सदा
चलता हैमौसम जिससे बदलाकरता
सृष्टि-चक्र अवरोधित कर, विपति निमंत्रण सही नहीं।
राजनीति
में निष्ठा - प्रेमी,
और समर्पित, कर्मठ जन हों।
सेवा जिनका
मूल - मंत्र हो,
और सुकोमल निर्मल मन हो।
जन-जन के मन में
बस कर जो,जन सेवा का काम करें,
ऐसे लोगों के द्वारा क्या,शासन-संचालन सही नहीं?
न्यायाधीश
पंच परमेश्वर,
निर्भय हो
कर न्याय करें।
शीघ्र और
निष्पक्ष न्याय हो,
भ्रष्ट - कर्म
से लोग डरें।
भ्रष्ट, अनैतिक, व्यभिचारी को,कभी न कोई माँफ करे,
राम-राज्य फिर
से आये,क्या ऐसा करना सही नहीं?
....आनन्द विश्वास
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