Wednesday, July 7, 2010

सौ-सौ जनम नहीं मिल पायें.



             सौ
-सौ जनम नहीं मिल पायें.
                          
[मुजीव-वाणी]

मत छिडको तुम नमक घाव पर, मत मुझको तुम प्यार दो,
इतने  घाव  लगे  हैं उर में, सौ - सौ  जनम  नहीं  भर  पायें.

शासक   हो  कर  तुम  जनता  का  शोषण  करते, 
भाई  हो    कर   तुम , बहनों   की    मर्यादा  हरते. 
तुम  रिपु  कहते  जिन्हेंआज  वे बने  कृष्ण सम, 
लाखों  द्रुपदाओं    को,   चीर  उढ़ाते,   रक्षा   करते.

एक पाक  का, एक  राष्ट्र कामत  मुझको  उपदेश दो,
इतने भाग हुये हैं घट के, सौ-सौ जनम नहीं मिल पायें.

देख  तुम्हारी  परम  वीरता, कायरता  भी  शरमाई,
संगीन भोंकते  बच्चों को, तुमको  शर्म  नहीं  आई.
जिन  पापों  को, घृणित कार्य को, कह न  सकें हम,
सरे आम सड़कों पर करते, तुमको   लाज नहीं आई .

सदाचार  काधर्म शास्त्र   कामत    मुझको   उपदेश  दो,
इतने  दाग  लगे  दामन  में, सौ-सौ   जनम  नहीं  धुल पायें.

अबलाओं के सबल   हस्त को, तुमने नहीं निहारा है,
फूल  सुकोमल  नारी   नेचंडी  का रूप  संवारा  है.
जब - जब   भी  चूड़ी  तजशमशीर  उठाई नारी ने,
दुश्मन उलटे पांव भगा, या जड़ से किया किनारा है.

अबहमने  मरना   सीख  लिया  है, जीने  का  अधिकार  है,
इतने  त्याग  किये  है  हमनेसौ-सौ  जनम  नहीं  मर पायें.

आजादी   का  बंदी  मैंतुमने   मानव    संहार किया,
खून  पिया  तुमने  मानव  कामैंने  उसका दर्द पिया.
हंस  बचाने  की  खातिरआदर्शो   में   बड़ी  विषमता,
गौतम  ने  हैं   प्राण   बचायेदेवदत्त   ने  वार   किया.

आदर्श  हमारे   भिन्न - भिन्न   हैं,   एक   नदी   दो  पाट से,
इतने   दूर  हो  चुके  तुमसे,  सौ - सौ जनम  नहीं  मिल पायें.


                                            ....आनन्द  विश्वास.


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