Thursday, July 8, 2010

जिन्दगी संवार लो.



जिन्दगी संवार लो ..........

दीप लौ  उबार लो, शीत  की   बयार से,
जिन्दगी संवार लो, प्रीति की  फुहार से.

साँस भी   घुटी - घुटी,
आस  भी छुटी - छुटी.
प्यास प्रीति की लिये,
रात भी   लुटी - लुटी.
रात को  संवार  लो, चंद्र के  प्यार से,
जिन्दगी संवार लो,......................

दीप के   नयन  सजल,
सूर्य  हो    गया  अचल.
तम सघन को देख देख,
रात  गा    रही   गजल.
रात  को वुहार   दो, भोर के  उजार से,
जिन्दगी संवार लो,......................

गुलाब अंग  तंग हैं,
कंटकों  के   संग हैं.
क्या यही स्वतंत्रता,
कैद क्यों   विहंग हैं.
बंधनों को   काट दो, नीति  की  दुधार से,
जिन्दगी संवार लो,.........................

राम - राज  रो   उठा,
प्रीति साज   सो उठा.
स्वार्थ  द्वेष राग  का,
समाज आज हो उठा.
समाज को  उवार लो, द्वेष  के विकार से,
जिन्दगी संवार लो,..........................
                   ........ आनन्द  विश्वास





No comments:

Post a Comment